Dynamic Memory Methods In Hindi

स्मृति-एक परिचय


डाइनैमिक मेमोरी मेथड्स का संशोधित संस्करण आपकी जिज्ञासाओं तथा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक ढंग से तैयार किया गया है । आज के प्रतियोगी युग में विद्यार्थी तरह तरह की परेशानियां तथा दबाव महसूस करते हैं जिससे उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता । अंततः वह कुंठित हो जाता है । यह पुस्तक उन मनोवैज्ञानिक विषमताओं को दूर करने में मदद तो करेगी ही साथ ही प्रबल आत्मविश्वास का संचार करेगी । परिणामस्वरूप आप अपने मस्तिष्क का सर्वोत्तम प्रयोग कर पायेंगे । हमें पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक आपके लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगी 

जरा सोचिये क्या होगा यदि हम अचानक अपनी स्मृति खो बैठें ? जरा ठहरिये और दो मिनट के लिए इसके बारे में सोचिये । द्वितीय विश्वयुद्ध में कई सिपाही बमों के धमाकों से अपनी स्मृति खो बैठे थे । जो लोग डूबने ही वाले थे और बचा लिये गये थे , उन्होंने बताया था कि एक सेकण्ड में उनका सम्पूर्ण जीवन पूर्ण विस्तार के साथ उनके मस्तिष्क में उमड़ पड़ा था । यह बतलाता है कि कैसे स्मृति अनुभवों को भली - भांति संग्रहित करती है । हमारा मस्तिष्क एक ऐसा विशाल पुस्तकालय जैसा है , जिसमें लाखों पुस्तकें तो हों परंतु कोई पुस्तक सूची न हो , पुस्तकों का कोई सुव्यवस्थित क्रम न हो । यदि एक ऐसे पुस्तकालय से आपको अपनी पसन्द की एक पुस्तक को ढूंढ़ना हो , तो क्या तरीका सम्भव होगा ? हां , पुस्तक सूची रहित पुस्तकालय से एक पुस्तक को ढूंढ़ने का एक तरीका यह है कि एक एक करके सभी पुस्तकों को देखा जाये । यह जानने के लिए कि अमुक पुस्तक वहां विद्यमान है या नहीं । ऐसे तरीके से आप उस पुस्तक को शायद ढूंढ निकालें या फिर न निकाल पाएं । यदि आप उसे ढूंढ़ निकालने में असफल हो जाते हैं तो आप यही कहेंगे कि वह पुस्तक पुस्तकालय में विद्यमान नहीं हैं लेकिन सच्चाई यह है कि आप उस पुस्तक को ढूंढ़ निकालने में असफल रहे हैं । ऐसी ही बात हमारे मस्तिष्क के मामले में हैं । वह प्रत्येक वस्तु जिसे हमने देखा , सुना या अनुभव किया है हमारे मस्तिष्क के किसी - न - किसी भाग में स्थायी रूप से सुरक्षित रहती है । लेकिन कभी - कभी हम उस सामग्री या विचार को ढूंढ निकालने असमर्थ रहते हैं या वे कहां स्थित है यह नहीं बता पाते और तब हम यह कहते हैं कि हम भूल गए हैं । उदाहरणार्थ , आज आपका परिचय किसी गौरव से कराया गया । कुछ समय बाद आप उससे पुनः किसी बाजार या पार्क में मिलते हैं । यह सम्भव है कि आप उसके नाम को याद न कर पायें या आप कहें , मुझे खेद है कि मैं आपको जानता हूं पर आपका नाम भूल गया हूं । उस समय यदि वह व्यक्ति आपको चार विकल्प देता है कि उसका नाम रवि , मोहन , गौरव या कृष्ण में से कोई एक है तो आप तुरंत उसका नाम याद कर लेंगे और कहेंगे " हां , हां , तुम्हारा नाम गौरव है । " इससे प्रतीत होता है कि आप उसका नाम भूले नहीं हैं लेकिन केवल समस्या यह थी कि आप अपनी स्मृति में उसका नाम ढूंढ नहीं पाये थे । ऐसा इसलिये होता है क्योंकि आप कोई मानसिक सूची नहीं रखते । जब कभी हमें कोई चीज याद करनी होती है तो हम अपने मस्तिष्क रूपी पुस्तकालय में इधर उधर ढूंढ़ना आरंभ कर देते हैं , और जिस क्षण हम उसे ढूंढ़ निकालने में असफल हो जाते हैं , तभी यह मान बैठते हैं कि हम उस विशेष चीज को भूल गये हैं । मित्रों , इसका अर्थ यह हुआ कि तुरंत संदर्भ के लिए हमें एक मानसिक सूची की आवश्यकता है जिससे हमारा स्मरण कर पाना और याद रखना कुशल और प्रभावी बन सके ।
           
     आयु 
जैसे - जैसे हम आयु में बढ़ते जाते हैं , क्या हमें अपनी कुशलता में कमी हो जाने को स्वीकार करना चाहिए ? यह प्रश्न अक्सर वे लोग पूछते हैं जो 50 वीं वर्षगांठ मना चुके होते हैं । युवा व्यक्ति अपने मस्तिष्क के कोषों के विकास के बारे में अधिक चिंतित नहीं होते और वे इस तथ्य को महसूस नहीं कर सकते कि उनकी स्वयं की स्मृति सदैव आज जैसी नहीं रहेगी । याद कर पाना आंशिक रूप से शारीरिक और आंशिक रूप से मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है , और यह दोहरी व्यवस्था उन असंख्य विविधताओं के लिए उत्तरदायी होती है जिनमें हमारी स्मृति कार्य करती है । मनोवैज्ञानिक अर्थ में स्मृति उन मार्गों पर निर्भर करती है जो हमारे मस्तिष्क के कोषों को जोड़ते हैं । इन मार्गों की संख्या और सशक्तता इनकी क्रियाशीलता को निर्धारित करती हैं । जैसे हम बड़े होते जाते हैं , मस्तिष्क के ये कोष कमजोर होते जाते हैं , और एक ऐसा समय आता है जब सीखने की प्रक्रिया को तुलना में भूलने की प्रक्रिया अधिक तेजी से कार्य करने लगती है । जीवनकाल के अंत में जबकि ऐसा एक अनचाहा परिवर्तन अवश्यमेव आता है तब भी हम इसके घटित होने में देरी ला सकते हैं । यह कोई संयोग मात्र नहीं है कि कई व्यक्ति जो अन्य व्यक्तियों की तुलना में अपने मस्तिष्क को अधिक काम में लाते हैं , वे वृद्धावस्था तक भी अपनी स्मृति और उत्पादन शक्ति को कायम रख सकते हैं । बर्नार्ड शॉ , गोथे , टॉमस एडीसन के बारे में सोचिये । यह सोचना असंगत होगा कि अपने मस्तिष्क के कोषों की उचित देखभाल करने के लिए हमें उन्हें कभी कभी आराम देना चाहिए । आप अपने मस्तिष्क को उसी प्रकार प्रशिक्षित कर सकते हैं जैसे कि आप अपनी मांसपेशियों को प्रशिक्षित कर सकते हैं और आप साधारण परीक्षाओं में इसे अपने संतोष के लिए सिद्ध कर सकते हैं । जब आप इस पुस्तक में दिये गए अभ्यासों को करेंगे । आप यह देखेंगे कि वे प्रयोग जो पहली बार प्रयास द्वारा किये जाते हैं , आसान बन जाते हैं । जब उनकी पुनरावृत्ति की जाती है और कुछ समय बाद तो आप यह समझ भी नहीं पाते कि इनको करने में प्रयास की आवश्यकता पड़ी ही क्यों थी । • यदि हम यह अनुभव कर लें कि एक मांसपेशी की भांति स्मृति विकसित की जा सकती है तो हमें इस तथ्य को भी स्वीकार करना होगा कि मांसपेशी की भांति ही इसकी कुशलता भी कम हो सकती है यदि इसे भली - भांति काम में न लाया जाये । हम सभी इस बात को जानते हैं कि एक बीमारी जिसके कारण हमें बिस्तर पर कई सप्ताह पड़े रहना पड़ता है , हमारा चलना बहुत कठिन कर देती है । पैरों की मांस - पेशियां चलना भूल जाती हैं , और हमको चलनर दोबारा सीखना पड़ता है - बहुत कुछ उसी भांति जैसे कि एक नन्हा बालक पहली बार चलने की कुशलता को सीखता है । हमें क्यों आश्चर्य होना चाहिए जबकि ऐसी ही बात हमारी स्मृति के साथ हो जाती है वह भी अपनी विश्वसनीयता उस अवस्था में खो देती हैं जब हम इसका प्रयोग नहीं करते ? एक औसत प्रौढ़ व्यक्ति सदैव अपनी स्मृति पर विश्वास करने में डरता है । कई प्रकार की पुस्तिकाएं , कलेंडर , मुलाकात की डायरियां , टेलीफोन सूची , यादाश्त के पर्चे , डेस्क नोट्स आदि होते हैं - ये सभी हमारी स्मृति के बोझ को कम करने के लिए होते हैं और इसलिए ये सब गलत दिशा में कार्य करते हैं । थोर्नडाइक नामक सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ने स्मृति और आयु से संबंधित परीक्षाओं पर अपना बहुत सारा समय लगाया था । उसने यह पाया कि हमारे जीवन के अंतिम भाग को छोड़कर , हमारी बढ़ती हुई आयु में कमी या पतन होने का कोई प्राकृतिक कारण नहीं होता । यदि उस समय से पहले हमारी स्मृति कम हो जाती है , तो हमें स्वयं को ही उसका दोषी मानना चाहिए । हमें यह स्वीकारना चाहिए कि पाठशाला छोड़ने के बाद हम प्राय : किसी भी चीज को सीखने की चिंता नहीं करते । वास्तविक अर्थ में सीखना केवल पढ़ना नहीं है जो केवल मात्र निष्क्रिय और स्वीकार करने जैसा होता है । व्यावहारिक प्रौढ़ जीवन में अभिनय और उस जैसे व्यवसायों को छोड़कर , सीखने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होता । इससे उत्तम स्मृति की तकनीकों का ह्रास होता है जो निरंतर व्यवहार से संबंधित होती हैं । जैसा कि मैंने ऊपर बताया है हम अपनी स्मृति को बोझिल बनाने से डरते हैं । और हममें से कई यह सोचते है कि नामों , पतों , टेलीफोन नम्बरों और मुलाकातों को याद रखना समय को नष्ट करना है , उन्हें तो बहुत सुगमता पूर्वक नोट बुकों या डायरियों में लिखा जा सकता है । रोज लोग पैदल घूमते हैं जबकि उनके लिए कार या बस का उपयोग करना बहुत आसान हो सकता है । वे ऐसा इसलिये करते हैं क्योंकि घूमना स्वास्थ्यवर्धक है और वे अपनी मांसपेशियों की शक्ति को बढ़ाना या कम कम उतना तो बनाये रखना ही चाहते हैं लेकिन दूसरी ओर छोटी छोटी चीज को लिखकर वे अपनी स्मृति की शक्ति को कमजोर बनाते हैं । यदि वे लम्बे समय के बाद किसी चीज को याद करने का प्रयास करते हैं , तो वे उसे भूल सकते हैं । परिणामस्वरूप वे अपनी स्मृति में और अधिक अविश्वास करने लगते हैं । अंत में वे अपनी स्मृति को पूर्णतया असफल पाकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं । वे यह महसूस नहीं करते कि वे स्वयं ही तो इसके लिए उत्तरदायी रहे हैं । मनोवैज्ञानिक कारणों के अतिरिक्त , यह सब इस तथ्य से पता चलता है कि लोग पिछले माह या पिछले सप्ताह घटित महत्त्वपूर्ण घटनाओं को भूल जाते हैं जबकि वे पिछले 30 या 40 वर्षों पूर्व घटित घटनाओं को यहां तक कि अमहत्त्वपूर्ण घटनाओं को भी , पूर्णतया याद कर सकते हैं ।

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